Mandla: आदिवासियों के घरों में वन विभाग ने की तोड़फोड़, पीड़ित बोले- ऐसा तो अंग्रेजों के समय में भी नहीं हुआ

वन विभाग की टीम ने की कार्रवाई। – फोटो : अमर उजाला

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मध्य प्रदेश के मंडला जिले के मवई विकास खंड में आने वाले सारसडोली गांव में वन विभाग के अधिकारियों का आदिवासियों पर अत्याचार देखने को मिला। यहां, आदिवासी समाज के लोग जंगल से लगे अपने खेत में साल 1991-92 से घर बनाकर शांतिपूर्वक रह रहे हैं। शुक्रवार  27 जून को वनविभाग के अधिकारी अपने स्थायी लेवरों को लेकर यहां पहुंचे और पैरा मांचा के खंभों को कुल्हाड़ी से कटवा दिया। कोठासार में रखे पुराने मंलगों को वन सुरक्षा समिति अध्यक्ष रामसिंह की अगुआई में उठाकर ले गए।

जिला कलेक्टर और जिला वन परिक्षेत्र अधिकारी को निस्तार छोड़कर और सलाह से बाड़ रूंधाई करने के लिए आवेदन किया गया, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई। ग्राम सभा में वन विभाग द्वारा गांववासियों से भी कोई सलाह नहीं ली गई। बतादें कि उक्त जगह पर वनाधिकार अधिनियम 2006 के अन्तर्गत दावा भी किया गया है।

घटना के समय उपस्थित लोगों ने बताया कि वनविभाग और उनके स्थायी मजदूर पैरा में आग लगाने के लिए तैयार थे। वन विभाग की इस कार्रवाई में मोहल्ले में बसे 12 परिवारों का जीवन अस्त-व्यस्त हो गया। 


इनका कहना है 

ग्राम सारसडोली के एक मोहल्ला जिसमें 12 परिवार का निस्तार बाधित हो जाने से लोगों को बहुत परेशानी है। पंचायत द्वारा  सलाह से काम कराने का आग्रह किया था। लेकिन नजर अंदाज कर बाड़ बना दिया गया।  लोगों का परेशानी  बहुत है। 

भागरती बाई धुर्वे, सरपंच, ग्राम पंचायत सारसडोली

मैं 1991-92 से यहां अपना गौशाला बनाकर निस्तार कर रहा हूं। वनाधिकार कानून अंतर्गत दावा भी किया हूं। वन विभाग और लेवर द्वारा पैरा में आग लगाने की बात करते रहे। इसके बाद जबरदस्ती कोठा सार और तोड़कर मांचा का लकड़ी निकाल कर ले गए । इतना आताताई तो अंग्रेजों के समय भी नहीं थी।

फागू सिंह परते, पीड़ित

जंगल से सटे खेतों में कोठा सार बनाकर कई पीढ़ियों से हम लोग यहां निस्तार कर रहे हैं। हम लोगों पर वन विभाग द्वारा किए गए अमानवीय कृत्य से हम बहुत दुःखी हैं।

विश्राम सिंह यादव, पीड़ित

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